हरक और बहुगुणा खेमे में बंटे विधायक, बागियों में फूट से भाजपा को राहत
बीएसएनके न्यूज संवाददाता / देहरादून डेस्क। पिछले कुछ दिनों से बागी नेताओं की नाराजगी ने चुनावी मौसम में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी थी, लेकिन अब बागी नेताओं की आपसी फूट और निजी हित की राजनीति ने भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलों को कुछ हद तक कम कर दिया है। दरअसल 2016 में कांग्रेस बागी नेता बड़ी संख्या में भाजपा में शामिल तो हुए थे, लेकिन अब इन बागी नेताओं में आपसी कलह के कारण इनकी ताकत कुछ कम हुई है। जिससे अब भारतीय जनता पार्टी पर दबाव कम दिखाई दे रहा है।
कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के बयान इन दिनों पार्टी के लिए मुसीबत बने हुए हैं। हरक रावत और विधायक उमेश शर्मा काऊ को पार्टी के नेता मनाने में जुटे हुए हैं। लेकिन भाजपा पर बागियों का यह दबाव उतना नहीं है, जितना बनाया जा सकता था। बता दें कि साल 2016 में भारतीय जनता पार्टी में कांग्रेस के करीब 9 विधायक शामिल हुए थे। दिग्गज नेताओं के इतनी बड़ी संख्या में शामिल होने का नतीजा यह रहा कि भाजपा ने प्रदेश में पहली बार 57 सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता पर काबिज हो गई।
इस बार भारतीय जनता पार्टी 60 पार का नारा दे रही है, लेकिन पार्टी में कांग्रेस से आए बागियों की समस्याएं लगातार बनी हुई है। उस पर पार्टी नेता निराकरण की बात तो कह रहे हैं, लेकिन पार्टी बहुत ज्यादा दबाव में नहीं दिखाई दे रही है। इसकी वजह है कि उत्तराखंड में कांग्रेस से भाजपा में आए बागियों का गुट दो भागों में टूट गया है। हरक सिंह रावत नाराज विधायकों के साथ मिलकर तीन से चार विधायकों तक की सीमित रह गए हैं। उधर विजय बहुगुणा खेमा अपने निजी हितों के चलते अलग दिखाई दे रहा है।
विजय बहुगुणा, सुबोध उनियाल और सौरभ बहुगुणा भाजपा के साथ दिखाई दे रहे हैं। जाहिर है बागी विधायकों के इस गुट में निजी हितों के आने से उन दिग्गज नेताओं की मजबूती में कमी आई है। भारतीय जनता पार्टी के नेता कहते हैं कि भाजपा में काफी बड़ी संख्या में नेता शामिल हुए हैं। नेताओं की बेहद ज्यादा उम्मीदें रहती हैं। लिहाजा कुछ हद तक दबाव तो पार्टी पर रहता ही है।
प्रदेश में राजनीतिक समीकरणों को देखा जाए तो फिलहाल हरक सिंह रावत और उमेश शर्मा एक पाले में दिखाई दे रहे हैं। उधर प्रणव चौंपियन, प्रदीप बत्रा समेत केदार सिंह रावत भी राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से पाला बदल सकते हैं। विजय बहुगुणा को पिछले 5 साल में कोई पद नहीं मिला, बावजूद इसके वह अपने बेटे को सितारगंज से विधायक का टिकट मिलने के बाद से संतुष्ट दिखाई दे रहे हैं। दूसरी तरफ सुबोध उनियाल को मंत्री पद मिलने से उन्हें भाजपा में संतोष है।कांग्रेस का कहना है कि बागियों ने 2016 में जितना नुकसान हो सकता था, वह किया है। अब बागियों में जो अंतर्कलह देखने को मिल रहा है। उससे वह खुद ही कमजोर हुए हैं। इसके अलावा भाजपा के अंदर भी अंतर्कलह हैं, जिससे भाजपा कमजोर हो रही है।