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UTTARAKHAND: पिरूल से बिजली उत्पादन बंदी की कगार पर

पिरूल से बिजली उत्पादन, गांवों तक स्वरोजगार और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का सपना दो साल में ही लड़खड़ा गया। उत्तराखंड रिनिवेबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (उरेडा) केे माध्यम से 21 प्रोजेक्ट (PROJECT) आवंटित हुए। छह प्रोजेक्ट लगे और उनमें से अब कई बंद हो चुके हैं। बाकी भी बंदी की कगार पर हैं।

करीब ढाई साल पहले तत्कालीन  मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जंगलों में चीड़ के पिरूल से लगने वाली आग के समाधान के तौर पर पिरूल से बिजली उत्पादन की नीति बनवाई। यह नीति जारी हुई। इस आधार पर उरेडा ने लोगों से प्रस्ताव मांगे। नीति इतनी लुभावनी थी कि लोगों ने उत्साह के साथ आवेदन किए।

पहले चरण में 21 प्रोजेक्ट (PROJECT) आवंटित किए गए। इनमें से अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल, उत्तरकाशी और पौड़ी में कुल छह प्रोजेक्ट स्थापित हुए। बाकी आवेदक अभी तक प्रोजेक्ट ही नहीं लगा पाए। पिथौरागढ़ में प्रोजेक्ट (PROJECT) लगाने वाले दीवान सिंह देउपा ने बताया कि उनके प्रोजेक्ट में सबसे ज्यादा तकनीकी दिक्कतें पेश आ रही हैं। उन्होंने बताया कि एक बार मशीन खराब होने पर कई-कई माह तक कोई ठीक करने नहीं आता।

पौड़ी में प्रोजेक्ट (PROJECT) लगाने वाले हिम्मत सिंह रावत का कहना है कि अभी कई महीने के बाद उनकी मशीन ठीक हुई है जो बमुश्किल एक सप्ताह ठीक चलेगी। उन्होंने बताया कि UPCL से बिजली नहीं मिल रही और ऊपर से तकनीकी रुकावटें। उन्होंने दो साल में महज 60 हजार रुपये की बिजली का उत्पादन किया है। इसी प्रकार, नैनीताल में प्रोजेक्ट (PROJECT) लगाने वाली खष्टी सुयाल भी परेशान हैं। उन्होंने बताया कि दो साल तक पूरे स्टाफ को अपनी जेब से वेतन दिया। पहले जेनरेटर खराब हुआ, जो कई माह बाद ठीक हुआ। उन्होंने बताया कि वह अभी तक 1500 यूनिट बिजली ही बना पाई।

स्वरोजगार का सपना देखकर पिरूल से बिजली के प्रोजेक्ट (PROJECT) लगाने वाले लाखों रुपये के कर्ज के बोझ में दब गए हैं। 21 से 28 लाख रुपये तक की लागत से पहाड़ों में प्रोजेक्ट लगाने वाले लोगों का कहना है कि लगातार समस्याओं की वजह से वह बिजली उत्पादन ही नहीं कर पाए। हिम्मत सिंह रावत का कहना है कि उनका बैंक लोन एनपीए होने की नौबत आ गई है। बिजली उत्पादन न होने की वजह से वह बैंक लोन की किश्त भी नहीं चुका पा रहे हैं।
हम कोशिश कर रहे हैं, सभी प्रोजेक्ट संचालकों से बातचीत भी की जा रही है। इन सभी प्रोजेक्ट का आवंटन पिरूल नीति के तहत किया गया था। इसी के तहत जल्द ही कुछ समाधान निकाला जाएगा। -नीरज गर्ग, चीफ प्रोजेक्ट ऑफिसर, उरेडा 

हमारी कंपनी ने पिरूल से बिजली के प्रोजेक्ट स्थापित किए हैं। हमारी टीमें लगातार तकनीकी समस्याओं का समाधान करा रही हैं। जो लोग प्रोजेक्ट चलाने के इच्छुक नहीं हैं, वही नहीं चला पा रहे हैं। -रजनीश जैन, संस्थापक, अवनी बायो एनर्जी

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