उत्तराखंड में बिना लाइसेंस चल रहे वन विभाग के हथियार
Dehradun: उत्तराखंड में 71 प्रतिशत से अधिक भूभाग पर खड़े वन क्षेत्रों और उनमें रहने वन्यजीवों की रक्षा वन विभाग जिन हथियारों के दम पर कर रहा, वर्षों से उनके लाइसेंस का नवीनीकरण ही नहीं हुआ। वे किस हाल में हैं और संख्या कितनी है, आंकड़ा भी विभाग के पास नहीं है।
पिछले दिनों वनों में सुरक्षा मामलों को देखने वाली समिति की बैठक में यह बात सामने आई, तब जाकर अफसरों के कान खड़े हुए। वन विभाग में वन और वन्यजीवों की रक्षा के लिए तीन तरह के हथियार उपलब्ध कराए जाते हैं। इनमें 12 बोर की डबल बैरल, .351 बोर की राइफल और रिवाल्वर शामिल है।
इसके अलावा वन्यजीवों को चिकित्सा या अन्य कारणों से पकड़ने से पूर्व बेहोश करने के लिए पंप एक्शन गन या टैंकुलाइजर गन का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, यह एक तरह का इंस्ट्रूमेंट है, जो शस्त्र श्रेणी में नहीं आता है। टैंकुलाइजर गन को छोड़ अन्य हथियारों को रखने या चलाने के लिए आर्म्स एक्ट के तहत लाइसेंस की जरूरत है।
इतना ही नहीं, इन्हें समय-समय पर रिन्यू भी करना पड़ता है। विभाग में क्षेत्रीय रेंजों में तैनात फॉरेस्ट गार्ड, फॉरेस्टर, डिप्टी रेंजर, रेंजर और डीएफओ को हथियार रखने का अधिकार प्राप्त होता है। विभागीय सूत्रों की मानें तो वन विभाग में सालों से कई शस्त्रों का लाइसेंस रिन्यू ही नहीं हुए हैं।
विभाग के पास कुल कितने हथियार हैं और वह किस स्थिति में हैं, इसकी भी ठीक-ठीक जानकारी संबंधित अफसरों के पास नहीं है। विभाग के सूत्रों की माने तो वन विभाग के पास 50 प्रतिशत हथियार ऐसे हैं, जिनके लाइसेंस ही नहीं हैं।