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उत्तराखंड में पौड़ी के ऊपर से गुजरा धूमकेतु सी-2023-ए3, 12 को फिर पृथ्वी के नजदीक से निकलेगा

पौड़ी : उत्तराखंड के पौड़ी के आसमान से गुजरता हुआ एक धूमकेतु इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। विशेषज्ञों की मानें तो धूमकेतु सी/2023- ए3 खगोल विज्ञान में इस साल की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक माना जा रहा है। इसे त्सुचिनशान-एटलस के नाम से भी जाना जाता है।

बीते साल जनवरी 2023 में इसकी खोज चीन के पर्पल माउंटेन ऑब्ज़र्वेटरी और साउथ अफ्रीका स्थित एस्टेरॉइड टेर्रेस्टेरियल एंपेक्ट लास्ट अर्लट सिस्टम (एटलस) ने की थी। सी/2023-ए3 का यह पहला सफर है। यह धूमकेतु दूरस्थ ऊर्ट क्लाउड से आया है।

यह धूमकेतु बीते 27 सितंबर को अपने पेरिहीलियन (सूर्य के सबसे नजदीकी बिंदु) से सफलतापूर्वक गुजरा। इससे यह उम्मीद की जा रही है कि आगामी 12 अक्तूबर को यह पृथ्वी के नजदीक से गुजरेगा जो कि अद्भुत नजारे पेश करेगा। इस धूमकेतु को कई सालों से खगोलीय घटनाओं पर नजर रख रहे खिर्सू निवासी व पेशेवर फोटोग्राफर प्रीतम सिंह नेगी ने कैमरे में कैद किया है।

7.1 करोड़ किलोमीटर होगी पृथ्वी से दूरी
एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि श्रीनगर के खगोलभौतिकी (एस्ट्रोफिजिक्स) के विशेषज्ञ प्रो. हेमवती नंदन पांडेय की मानें तो यह धूमकेतु आगामी 12 अक्तूबर को पृथ्वी के सबसे नजदीक से गुजरेगा। उस समय इसकी दूरी करीब 7.1 करोड़ किलोमीटर होगी। इस दौरान यह धूमकेतु अपने सबसे चमकदार रूप में दिखाई देगा। दक्षिणी गोलार्द्ध में इसकी चमक शुक्र व बृहस्पति ग्रहों के समान होने की आशंका जताई जा रही है। बताया कि अंतरिक्ष प्रेमियों के लिए यह दुलर्भ घटना है, जिसे नग्न आंखों से भी देखा जा सकेगा।

पहाड़ों के स्वच्छ वातारण के कारण आसानी से दिखती हैं खगोलीय घटनाएं
एस्ट्रोफिजिक्स के जानकार पांडेय ने बताया कि खगोलीय दृष्टि व एस्ट्रोफोटोग्राफी के लिए पहाड़ों के क्षेत्र सबसे उपयुक्त हैं। ऊंचाई पर स्थित जगहों पर वायुमंडलीय विक्षेपण कम होने के चलते आसमान खगोलिय घटनाओं के लिए बेहतर विकल्प प्रदान करता है। बताया कि आजकल एस्ट्रोफोटोग्राफी का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है, जो कि आकाश प्रेमियों में विज्ञान की समझ को भी बढ़ाता है।

क्या है धूमकेतु
धूमकेतु धूल व बर्फ से बने बड़े पिंड होते हैं, जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इनका निर्माण करीब 4.6 अरब साल पहले हुआ। धूमकेतु मुख्य रूप से सौर मंडल के बाहरी किनारों पर पाए जाते हैं। इन्हें सूर्य की परिक्रमा करने में बहुत अधिक समय लगता है। सबसे लंबी ज्ञात कक्षा वाला धूमकेतु वेस्ट है।

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